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Sunday, April 29, 2012

Conversations: भिन्न भिन्न (Fractions and Life)

वो बोला
तुझे चार चोथाई  ज़िन्दगी दी...
एक चोथाई उसे समझने में निकल दी...
एक चोथाई उसे सोचने में निकल दी...
एक चोथाई उसे खोने के डर में निकल दी...
एक चोथाई रोने में निकल दी...
क्या गलती क्या हुई मुझसे ऐ मानव...
जो मैंने तुझे ये ज़िन्दगी दे डाली ?

में बोला
ऐ शेन्शाह-ए-रुस्तम...
खुद को दोष न दे...
यह कमाल तेरी चार चोथाई ज़िन्दगी का नहीं..
मेरे तीन तिहाई मस्तक का है...
एक तिहाई जो कल को समझ लेता है...
एक तिहाई जो आज को सोच लेता है...
और एक तिहाई जो कल को खोने के डर से रो लेता है...

वो बोला
ऐ कम्बक्थ मानव...
मस्तक में तेरी ज़िन्दगी नई...
ज़िन्दगी में तेरा मस्तक है...
जो कल था वो आज नहीं है...
जो आज है वो कल खो जायेगा...
तू धरा का धरा येह सोचता रह जायेगा
की ज़िन्दगी क्या है मेरे मालिक...
ज़िन्दगी खोना है...
की पाना है...

में बोला...
ज़िन्दग देना आसान है ऐ रुस्तम...
पर उसको पा के खोना...
और खो के पाना तू तब समझ पायेगा...
जब तू एक बार चार चोथाई ज़िन्दगी...
और तीन तिहाई मस्तक लेके इस ज़मीन पर आयेगा....
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